राम प्रसाद बिस्मिल की कविताएं नौजवानों में क्रांति का जोश जगाती थी

Aazad Staff

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दिन खून के हमारे, यारो न भूल जाना ! 
सूनी पड़ी कबर पे इक गुल खिलाते जाना।

राम प्रसाद बिस्मिल की कविताओं ने देश के नौजवानों में क्रांति का नया जोश भर दिया था। इन्होने अपनी कविताओं के जरिए हर एक भारतीय को आजाद भारत का सपना दिखाया। ?सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजूए कातील में है?। इनकी इस कविता ने कई नौजवानों में क्रांति का नया जोश जगाया था। यहीं को कविता थी जिसे गाते हुए बिस्मिल हस्ते हस्ते फांसी के तख्ते पर चढ़ गए थे।

30 साल के जीवनकाल में उसकी कुल मिलाकर 11 पुस्तकें प्रकाशित हुईं। कहा जाता है कि अंग्रेजो का मुकाबला करने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी कई कविताओं की पुस्तकों को बेच कर हथियार खरिद थे। बिस्मिल? के क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत 1913 से ही हो गई थी। इनका जन्म 11 जून, 1897, शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था।

काकोरी कांड में रामप्रसाद बिस्मिल के साथ राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, अशफाकउल्ला और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी। ये सभी क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे। यही संगठन बाद में भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बना। बता दें कि मात्र 30 वर्ष की उम्र में 19 दिसंबर, 1927 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया।

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